शिक्षक हमारे जीवन में पुस्तकों और अनुभवों के माध्यम से हमें सिखाने के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शिक्षक न केवल हमारा पेशेवर मार्गदर्शन करते हैं बल्कि वे हमारा व्यक्तिगत रूप से भी मार्गदर्शन करते हैं।भारत के कुछ महानतम शिक्षकों पर एक नजर डालते हैं।
रवीन्द्रनाथ टैगोर :
रविंद्रनाथ टैगोर प्रकृतिवाद के समर्थक थे उनका मानना था कि बच्चों को स्वतंत्र रूप से शिक्षा प्राप्त करने के अवसर मिलना चाहिए तथा उनको प्रकृति के बीच अंतःक्रिया करके अभ्यास करने से अधिक जानकारी प्राप्त करने का अवसर प्राप्त होता है।
टैगोर ने शिक्षा के लिए कुछ आधार भूत सिद्धांत दिए जिस्मे सर्वप्रथम विषयार्थी को शिक्षा उनके लिए मात्रभाषा के माध्यम से मिलने चाहिए तथा शिक्षा प्राप्त करते समय बालक को पूर्ण स्वतंत्रता चाहिए।
भारत में एक ऐसी शिक्षा चाहते थे जो वातावरण के निकटतम सम्पर्क में दी जाये। वह समझते थे कि शिक्षा का उद्देश्य सम्पूर्ण प्रकृति तथा सम्पूर्ण जीवन से व्यक्ति में एकत्व की भावना का विकास है। सुसंयोजित व्यक्ति के लिए वह एकत्व की भावना ही सबसे महत्त्वपूर्ण समझते थे । वह चाहते थे कि शिक्षा द्वारा विद्यार्थी में यह क्षमता विकसित हो जाये कि वह प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर सके और समाज के साथ मनुष्यता का व्यवहार कर सके।
स्वामी विवेकानंद:
सन् 1893 में अमेरिका के शिकागो में विवेकानंद ने विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया और आध्यात्मिकता से परिपूर्ण भारतीय वेदांत दर्शन को अमेरिका और यूरोप के क्षितिज में फैला दिया।रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य स्वामी विवेकानंद ने अपने शिकागो भाषण की शुरुआत , ‘मेरे अमेरिकी भाइयों एवं बहनों’ के साथ की थी। उनके इस संबोधन के प्रथम वाक्य ने दुनिया का दिल जीत लिया।
स्वामी विवेकानंद के अनुसार जिंदगी में सफल होने के लिए सर्वप्रथम साकारात्मक सोच रखते हुए उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाए। हम वो हैं जो हमें सोच हमने बनाया है, इसलिए इस बात का ध्यान रखें कि आप क्या हैं।- आपके भीतर से बाहर की तरफ विकसित होना है। कोई पढ़ा नहीं हो सकता, कोई आध्यात्मिक आध्यात्मिक नहीं बना सकता। आपकी आत्मा के आलावा कोई और गुरु नहीं है।हम वो हैं जो हमें सोच हमने बनाया है, इसलिए इस बात का ध्यान रखें कि आप क्या हैं। शब्द गौण हैं। विचार बने रहें। वे दूर तक यात्रा करते हैं।जो तुम सोचते हो वो हो जाओगे। यदि तुम कमजोर सोचते हो, तुम कमजोर हो जाओगे।एक विचार लो। उस विचार को अपना जीवन बना लो, उसके बारे में सोचो उसके सपने देखो, उस विचार को जियो। अपने मस्तिष्क, मांसपेशियों, नसों, शरीर के हर हिस्से को वह विचार में डूब जाने दो, और बाकी सभी विचारों को किनारे रख दो। यही सफल होने का तरीका है।
डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन :
उनका कहना था कि शिक्षक उन्हीं लोगों को बनाया जाना चाहिए जो सबसे अधिक बुद्धिमान हों। शिक्षक को मात्र अच्छी तरह अध्यापन करके ही संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए। उसे अपने छात्रों का स्नेह और आदर अर्जित करना चाहिए। सम्मान शिक्षक होने भर से नहीं मिलता, उसे अर्जित करना पड़ता है।
डॉ. राधाकृष्णन शिक्षा को सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिवर्तन के साधन के रूप में परिभाषित करते हैं। सामाजिक और राष्ट्रीय एकता के लिए, उत्पादकता बढ़ाने के लिए, शिक्षा का उचित उपयोग किया जाना चाहिए। शिक्षा का महत्व न केवल ज्ञान और कौशल में है, बल्कि हमें दूसरों के साथ रहने में मदद करना है। उनके अनुसार शिक्षा हमें केवल कुछ तकनीकें नहीं देनी चाहिए ताकि हम सफल जीवन जी सकें, बल्कि हमें “स्थायी मूल्यों” की खोज में भी मदद करनी चाहिए। अध्यापन का पेशा उनका पहला प्यार था और उनके अधीन अध्ययन करने वाले आज भी एक शिक्षक के रूप में उनके महान गुणों के प्रति कृतज्ञता के साथ याद करते हैं।